प्रेस की स्वतंत्रता एक बार फिर बरक़रार…..

June 2, 2021
CA Manoj Nahata
covid19

मद्रास उच्च न्यायालय ने COVID-19 बाबत लॉक डाउन के दौरान प्रिंट मीडिया संचालन की छूट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया ।

गुरुवार दिनांक 09.04.2020 को मद्रास उच्च न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिषय जो की प्रेस की स्वतंतता से सम्बंधित था उसमे टी. गणेश कुमार, बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया  और अन्य ( W.P. No. 7457 of 2020) मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एन किरुबाकरन और आर. हेमलता की खंडपीठ ने अपने पारित आदेश में लोकतंत्र में समाचार पत्र प्रकाशन के महत्व पर सटीक टिप्पणी की । न्यायालय ने कहा- समाचार पत्रों के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने या प्रतिबंधित करने के किसी भी प्रयास में मीडिया की स्वतंत्रता का हनन होगा।

न्यायालय  द्वारा  पारित आदेश की शुरुवात यूएसए के पूर्व राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन के एक उद्धरण के साथ  होती है- क्या मेरे लिए यह तय करना बाकी था कि हमें अखबारों के बिना सरकार चाहिए, या बिना सरकार के अखबार, मुझे एक क्षण भी संकोच नहीं करना चाहिए बाद वाले को पसंद करने मे। “ इसके माध्यम से न्यायालय ने समाचार पत्रों की महत्वता सम्झाने की कोशिस की।

कोर्ट ने कहा प्रेस लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। एक जीवंत मीडिया भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिये एक संपत्ति है। साथ ही बताया की जो अपेक्षित है वह केवल समाचार है और प्रकाशक के विचार नहीं। समाचार को पाठकों तक पहुंचाना होगा न कि प्रकाशकों या उनकी विचारधारा के विचारों को। हालांकि वे अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के हकदार हैं, लोग केवल समाचार चाहते हैं। विचारों और विचारधारा के मिश्रण से बचना चाहिए। हालांकि, यह एक तथ्य है कि कुछ प्रकाशक समाचार के साथ-साथ अपने विचारों को मिला रहे हैं।

कोर्ट ने कहा की माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी बहुत से निर्णयों में प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखा है। साथ ही हाल ही मे सुनाया गया निर्णय अनुराधा भसीन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया जो की 10 01 .2020 को  सुनाया था का भी हवाला दिया और कहा प्रेस की स्वतंत्रता हर लोकतान्त्रिक देश की जरुरत होती है इसके लिए किसी भी लोकतांत्रिक समाज इसका सम्मान करने के लिए प्रभावी कार्यप्रणाली और सरकारों की आवश्यकता होती है।

इन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए, बेंच ने याचिकाकर्ता की याचिका पर जोर दिया, जिसमें COVID-19 लॉकडाउन के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों से प्रिंट मीडिया की छूट को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने आशंका जताई थी कि कोरोनोवायरस अखबार के संपर्क से फैल सकता है, यह देखते हुए कि वायरस लगभग 4 दिनों तक कागज की सतहों पर जीवित रह सकता है। न्यायालय ने सभी  पहलुओं पर  गौर करने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता की आशंकाओं को बल देने के लिए बहुत कम शोध है।

सरकारी  वकील  द्वारा यह तर्क दिया गया कि समाचार पत्रों के माध्यम से वायरल प्रसारण कम से कम संभावित है। यह कहा गया कि समाचार पत्रों के माध्यम से वायरस के किसी भी संभावित प्रसार और मुद्रा संभालने के बाद केवल अपने हाथों को धोने से बचाव किया जा सकता है। इस पृष्ठभूमि में, सरकारी  वकील   ने प्रस्तुत किया कि प्रिंट मीडिया पर लगाम लगाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। अदालत ने बदले में, यह उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत एक विशेषज्ञ ने यह भी कहा था कि समाचार पत्रों के माध्यम से वायरल प्रसारण की संभावना कम थी। बेंच ने कहा  की जब वायरोलॉजी के प्रोफेसर ने खुद कहा कि पेपर उत्पादों के माध्यम से वायरस का संचरण कम से कम संभावित है, तो लोगों के मन में यह आशंका नहीं हो सकती है कि वायरस समाचार पत्रों के माध्यम से फैल सकता है साथ ही कहा अधिक शोध यह स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि वायरस आसानी से फैल सकता है समाचार पत्र पर । जब इन प्रारंभिक शोधों के आधार पर ऐसी स्थिति होती है और पर्याप्त आंकड़ों के अभाव में याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई प्रार्थना को अनुमति नहीं दी जा सकती है।

अदालत ने कहा हालां  की  ऐसे तरीके भी हैं जिनके द्वारा वायरस को फैलने से रोका जा सकता है / समाचार पत्रों को इस्त्री करने से पहले लोहे के बॉक्स का उपयोग करके या हाथों को साबुन से धोने के बाद फैलने से रोका जा सकता है। इसलिए, अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि केवल आशंका या कम से कम संभावना अखबारों के प्रकाशन पर रोक लगाने का आधार नहीं हो सकती क्योंकि यह भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति होगी, न केवल प्रकाशक, संपादक बल्कि पाठकों को भी अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटी दी जाती है ।

इस तरह कोर्ट ने रिट पेटिशन ख़ारिज कर दी एवं प्रेस की स्वतन्त्रा को एक बार फिर से जीवित रखा ।  न्यायालय ने आपने निर्णय के अंत मे महात्मा गांधीजी के समाचार पत्रों के बारे में कथन को उद्धृत किया:

Newspapers have become more important

to the average man than the scriptures.”

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